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समन्वित कीट प्रबंधन (Integrated pests management)nextmefood

 

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Integrated pests management (IPM)

 
 
 

 समन्वित कीट प्रबंधन (Integrated pests management)


रासायनिक कीटनाशियों का प्रयोग कम से कम करते हुए कीट नियंत्रण की कृषक यांत्रिक, भौतिक व जैविक विधियों का समावेश कर कीट नियंत्रण करना समन्वित कीट प्रबंधन कहलाता है।

IPM पर्यावरण के प्रति सुरक्षित है एवं इस विधि में कीटों का नियंत्रण न करके कीटों की संख्या को फसलों में आर्थिक क्षति स्तर के नीचे रखते है। इसे कीटो का नियंत्रण न कहकर कीटों का प्रबन्धन कहा जाता है। कीटों का आर्थिक दहलीज स्तर (ETL)

कीटों का वह घनत्व जिस पर आर्थिक क्षति स्तर पर पहुँचने पहले कीटनाशियों का छिड़काव किया जाना चाहिए वह आर्थिक दहलीज स्तर कहलाता है। इस स्तर पर फसलों पर कीटनांशियों का छिड़काव किया जाता है। इसलिए

इस स्तर को कार्यवाही दहलीज स्तर भी कहते है। प्रमुख फसलों के कीटों का आर्थिक दहलीज स्तर -

फसल

कपास             लीफ हॉफर                    1-2 leaf hopper/leaf

कपास            सफेद मक्खी                   5-10 वयस्क / पत्ती या
                                                                20 निम्फ / पत्ती
कपास            बॉलवर्म  (खोडे की लट्टे)       5-10% डोड़ों की बात


कीटो का आर्थिक क्षति स्तर (EIL) -


कीटो का यह घनत्व जो फसलों में आर्थिक नुकसान करने के लिए पर्याप्त है आर्थिक क्षति स्तर कहलाता है। इस स्तर को नुकसान दहलीज स्तर भी कहते है

कृषक विधियां (Cultural methods) -


यह सबसे सस्ती, इको फ्रेन्डली व कृषकों द्वारा आसानी से अपने खेत पर अपनाएं जाने वाली विधि है। इसलिए समन्वित कीट प्रबंधन में सर्वप्रथम इसी विधी को काम में लेते है।

इसमें निम्न विधियां सम्मलित है जैसे फसल चक्र अपनाना, गर्मियों में गहरी जुताई करना, खेत की सफाई रखना, समय पर बुआई करना, फांस फसले ऊगाना, कटिंग छटिंग करना व रोवी किस्मों को उगाना।

फांस फसले (Trap crop)
- ऐसी फसले कीटों को अपने तरफ आकर्षित करती है तथा कीटो से रक्षा के लिए मुख्य फसल की बाउण्डरी पर लगाई जाती है।

फास फसल                                             मुख्य फसल

भारतीय सरसों                                         पत्तागोभी

अरण्डी                                                    सोयाबीन

भिण्डी                                                      कपास
 
 (Mechanical method)

इस विधि में यंत्रों की सहायता से कीट नियंत्रण करते है। इसमें निम्न विधियां सम्मिलित है। जैसे- खेत के चारों ओर खाई खोदना (कातरा के लिए), ट्रेप यंत्रों का प्रयोग करना, पौधे के तने को पॉलीथिन की शीट व ग्रीस की पट्टी से बांधना (मँगो मिलिबग के लिए), फलों को ढकना या बांधना (पपीता व अनार के कीटों के लिए)
 
 (Physical methods) -

इस विधि में तापमान व आर्द्रता का नियमन करते है एंव गामा विकरणों का प्रयोग करते है। इसमे निम्न विधियां सम्मिलित है। जैसे- फ्लेम थ्रोवर (टिड्डी के लिए), नमी नियमन (10-12%) करके अनाजों का सुरक्षित भण्डारण किया जाता है।

SYNTHETICS

PESTICIDES

NUTRIENTS & FERTILIZERS

HERBICIDES & WEEDICIDES

FUNGICIDES

chemical combination



जैविक नियंत्रण (Biological control) -

जीवों द्वारा जैसे परभक्षी एव परजिव्याम कीटों एंव सुक्ष्म जीवों का प्रयोग करके कीटों का नियंत्रण करना जैविक नियंत्रण या पेरा बायोलोजिकल कन्ट्रोल कहलाता है।

परभक्षी (Predator) कीट

ऐसे कीट फसलों के नाशी कीटों से बड़े आकार के होते हैं तथा मुक्तजीवी होते हैं जो वयस्क बनने से पहले फसलों के नाशी कीटों का भक्षण करते
रहते हैं। जैसे- सरसों मसालों का प्रमुख कीट एफिड (मोयला/ होता है जिसका जैविक नियंत्रण लेडी बर्ड बीटल (कॉक्सीनेला सेप्ट परभक्षी कीट द्वारा किया जाता है।

कपास एवं सब्जियों के रस चूसने वाले कीट जैसे- सफेद मक्खी, जैसे (हरा तेला) एव थ्रिप्स का जैविक नियंत्रण क्राइसोपरला कार्निया (ग्रीन विग) नामक परभक्षी कीट द्वारा किया जाता है। विशेष प्रकार का परजीवी कीट होता है जो मुख्य फसल के सम्बन्धित



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परजिव्याभ (Parasitoid) कीट -

कीट के उपर अपने जीवन चक्र की एक अवस्था पूर्ण करता है। तथा होने पर सम्बन्धित नाशी कीट को मारकर स्वतंत्र जीवन व्यापन करता है। कीटों के जैविक नियंत्रण में काम में आने वाले मुख्यतः परजीव्याभ को हाइमेनोप्टेरा गण से सम्बन्ध रखते है।

कीटो का सूक्ष्म जीवों (microbes) द्वारा जैविक नियंत्रण

नाशी कीटों का सुक्ष्म जीवो जैसे- जीवाणु, विषाणु, फफुद, सूत्रकृमि एव इनके सह उत्पादों का प्रयोग करके नियंत्रण करना Microbial control कहलाता है

माइक्रोबियल कन्ट्रोल शब्द स्टर्न हेन्स ने 1949 में सर्वप्रथम दिया।

माइक्रोबियल कन्ट्रोल में काम में आने वाले सुक्ष्म जीव निम्न है

विषाणु (NPV), जीवाणु (Bacillus thuringensis), फफूद जैसे बवेरिया बेसियाना, हिरसुटेला, वर्टीसेलियम व मेटाराइजियम ऐनिसोप्ली (सफेद लट् के भृंग के लिए)

EPN: ऐसे सुत्रकृमी जो कीटो में व्याचि पैदा करके मारने के काम आते है। वे निमेटोड Entomo-pathogenic nematode (EPN) कहलाते है। जैसे – DD-136 mixture (Green /black commando) यह सुत्रकृमी व

जीवाणु का संयोजन है जो कीटों के नियंत्रण के लिए काम में लेते है। कीट नियंत्रण के महत्वपूर्ण जैविक कारक (Bio-agents)

1 ट्राइक्रोग्रामा (Trichogrammna spp.) - यह हाइमेनोप्टेरा गण का एक अण्ड परजीवी (Egg parasitoid) सुक्ष्म कीट है। जो लेपिडोप्टेरा गण के हानिकारक कीटों जैसे-कपास की लटें, चने की लटें. गन्ना व धान आदि के तना छेदक कीटो के अण्डे में अपने अण्डे देता है इसलिए इसे अड परजीव्याभ (Egg parasitoid) कहते है।

इसकी विभिन्न प्रजातियां है जो अलग अलग फसलों के कीटो में प्रभावी है जैसे- गन्ना एवं कपास के कीटों के लिए ट्राइक्रोग्रामा किलोनिस व धान के तना छेदक के लिए ट्राइक्रोइमा जापोनिकम

ट्राइकोग्रामा के एक कार्ड पर लगभग 16000-20000 पोषी कीटों के अण्डो पर उतनी ही संख्या में परजीवी कीट उत्पन्न होते है।

धान का शलभ कीट कोरसायरा सेफोलिनिका एक पोषी कीट है तथा इसके अण्डों पर इस परजीवी कीट को पाला जाता है।

एक हैक्टयर में करीब 100 स्थानों पर ट्राइकोकार्ड की Strips लगाना चाहिए। ट्राइकोकार्ड (Trichocard):- पोषी कीट के अण्डों पर ट्राइकोग्रामा परजीवी

कीट के 16000-20000 अंडो को एक कार्ड (15 x 7.5 cm size) में रखा जाता है जिसे ट्राइकोकार्ड कहते हैं।

2 ट्राइकोडमा (Trichoderma )
-यह एक प्रकार की लाभदायक कवक है जो पौधों में रोग उत्पन्न करने वाली

हानिकारक फफूंद / कवकों का भक्षण करती है। इसका पौधों के रोगों के जैविक नियंत्रण में महत्वपूर्ण स्थान है।

यह चने की विल्ट एव भूगफली की कॉलर रोट व्याधि की रोकथाम के लिए। प्रभावी जैविक फंफूदनाशी है। इसकी दो प्रजातिया प्रमुख है ट्राइकोड्रमा विरिडी एवं ट्राइकोड्रमा हर्जेनम

NPV घोल यह विषाणु (वाइरस) का घोल है जो लेपिडोप्टेरा गण की लटों को मारने के लिए चना, कपास एंव अन्य फसलों में काम में लेते है।

NPV का प्रयोग @ 250-500 LE/ha. करते है। LE = बेसिलस थुरेन्जेन्सिस (Bt)

लार्वा समतुल्य

यह जीवाणुओं (बेक्टिरिया) का घोल है जो लेपिडोप्टेरा गण की लटों को मारने के लिए चना, कपास एवं अन्य फसलों में काम में लेते है।

यह मार्केट में डाइपेल हाल्ट, बोयोबिट व जैवलीन के व्यापारिक नाम से मिलता है।

बीटी की मात्रा 0.5-1.0 लीटर रखी जाती है।

NPV एवं Bt उदर विष (Stomach poison) है ।

NPV एवं Bt दिन के समय प्रकाश की उपस्थिति में शिघ्र ही अपघटित हो जाते है इसलिए इनका छिड़काव शाम के समय किया जाता है।

स्युडोमोनास फ्लूरोसेन्स


यह कवकों एवं सुत्रकृमियों द्वारा होने वाले रोगों के जैविक नियंत्रण के लिए प्रयोग किया जाता है।

बेसिलस सबटेलिस


यह कपको द्वारा होने वाले रोगों के जैविक नियंत्रण के लिए प्रयोग किया

जाता है।

बेक्टिरीयोफेज ऐसे विषाणु जो जीवाणु (बेक्टिरीया) का भक्षण करत बेक्टिरीयोज कहलाते है
 
कीटों के जैविक नियंत्रण में काम आने वाले अन्य उपकरण

फांस (Trap) उपकरण -

1. प्रकाश फांस (Light trap) यह रात्रिचर कीटों जैसे लट्टों के वयस्क (मोथ) एवं सफेद लट् के वयस्क (भृंग/बीटल) को रात्री मे - कपास एवं चने की प्रकाश के स्रोत जैसे- बल्ब आदि द्वारा आकर्षित कर नष्ट करने के काम मे लेते है। प्रकाश फास में सफेद रंग की रोशनी का प्रयोग किया जाता है।
2. फेरोमेन्स ट्रेप यह मुख्यतः मादा कीटो से तैयार किया जाता है जो नर फोटो को आकर्षित करने के लिए काम में लिया जाता है।
3. पीला चिपचिपा फास (yellow sticky trap) पोलीहाऊस एवं मसाले वाली फसलो में सफेद मक्खी (white fly) व माहू (aphids) की निगरानी व नियंत्रण नीला चिपचिपा फास (Blue sticky trap) पोलीहाऊस में पर्णजीवी (thrips) 4 के लिए काम में लेते है। की निगरानी व नियंत्रण के लिए काम में लेते है।

कीटों का रासायनिक नियंत्रण कार्बनिक कीटनाशियों का वर्गीकरण -

1 ओर्गेनो क्लोरीन कीटनाशी वर्ग यह कार्बनिक कीटनाशीयों का प्रथम समूह है। इस समूह के सदस्य निम्न कीटनाशी है। डाईकना ST20 (a) DDT: यह विश्व में खोजा गया प्रथम कार्बनिक कीटनाशी था जिसके कीटनाशी
गुण की खोज 1939 में पॉल मूलर नामक वैज्ञानिक ने की। यह सर्वप्रथम द्वित्तीय

विश्व युद्ध के समय मलेरिया मच्छर को मारने के लिए सैनिकों द्वारा जंगलों में प्रयुक्त हुआ वर्ष 1941 में कृषि में फसलों के कीट नियंत्रण हेतु सर्वप्रथम उपयोग में लिया गया। इस कीटनाशी का अपघटन धीरे होने के कारण नुकसानदायक घटक पर्यावरण को प्रदुषित करने लगा जिससे वर्ष 1972 में USA में सर्वप्रथम प्रतिबन्ध हुआ तथा भारत में वर्ष 1989 में कृषि में प्रयोग में लाना प्रतिबन्धित हुआ

लेकिन घरेलू कीट (मक्खी, मच्छर) नियंत्रण हेतु अभी भी प्रयुक्त हो रहा है। (b) BHC यह इस समुह का दूसरा कीटनाशी था जिसका प्रयोग भारत में प्रतिबन्धित

वसा बलोराह (c) एन्डोसल्फान - मृदा एवं प्रर्यावरण प्रदुषित (due to long residue effect) के कारण हुआ।

वर्ष 2013 में भारत में प्रतिबन्धित हुआ। (d) डाइकोफोल (केल्येन) - 18.5 EC कीटनाशी के साथ वरूथी नाशक (Miticide) का काम भी करता है।

आगेनो फास्फेट समूह वर्तमान समय में बाजार में उपलब्ध कीटनाशियों में सबसे ज्यादा कीटनाशी आर्गेनोफास्फेट समूह के है। जैसे

(a) डाइक्लोरवॉश (DDVP 76EC) बाजार में वेपन के नाम से उपलब्ध है यह फल मक्खी (Freet By) के नियंत्रण के लिए प्रभावी है तथा अत्यधिक पर्यावरण के प्रति नुकसानदायक होने के कारण भारत में शिघ्र ही प्रतिबन्ध होने वाला

(b) डाईमिथोएट (30 EC) यह बाजार में रोगोर के नाम से उपलब्ध है। यह रस चूसने वाले कीटों की रोकथाम के लिए प्रभावी है। (c) एसिफेट (7S SP) यह कीटनाशक रस चूसने वाले कीटों जैसे मिर्च / प्याज का
प्ति की रोकथाम के लिए प्रभावी है।

((d) मोनोक्रोटोफोस (36 SL) यह कीटनाशी सब्जियों में प्रतिबन्धित है लेकिन फसलों के कीट नियंत्रण में अभी भी काम में लिया जा रहा है। (e) फोरेट (10G) यह मार्केट में थिनेट के ना से उपलब्ध है यह दानेदार कीटनाशी है जो विभिन्न फसलों के तना छेदक कीट एवं मृदा में रहने वाले
कीट जैसे- सफेद लट् के नियंत्रण के लिए प्रभावी है। (1) क्लोरपाइरीफॉस (20EC ) यह मुख्यतः गेहू व चना में दीमक नियंत्रण के लिए 4.5ml/kg बीजोपचार के लिए प्रभावी हैं। तथा खड़ी फसल में दीमक नियंत्रण हेतु 4 lit. /ha प्रति हेक्टेयर सिंचाई के पानी के साथ देवें।

(g) क्यूनालफॉस (25EC) यह मूंगफली व बाजरे में सफेद लट् की रोकथाम में काम में लिया जाता है।

(b) मैलाथियोन (50EC) यह सब्जियों में कीट नियंत्रण के लिए इस कीटनाशी

समुह में सबसे सुरक्षित माना जाता है। यह बाजार में 5% Dust (Powder) के रूप में उपलब्ध है।

(i) मिथाइल पैराथियोन 2% Dust (Powder)- यह कातरा व फड़का की रोकथाम

के लिए खरीफ की फसलों पर भुरकाव के लिए प्रयुक्त होती है। (3) मिथाइल डेमेटोन (Metasystos-R)- यह सरसों के एफिड की रोकथाम के लिए प्रभावी है।

कार्बेमेंट कीटनाशी समुह

(a) कार्बरिल 75WP- यह इस समूह का प्रथम कीटनाशक सेविन के नाम से उपलब्ध है।

था जो मार्केट 1- यह बाजार में फ्यूराडॉन के नाम से उपलब्ध है जो (b) कार्बोपयूरोन (3G)

में

कीटनाशी गुण के साथ अच्छा सुत्रकृमिनाशक भी है। (c) एल्डिकार्ब- यह बाजार में टेमिक के नाम से फसलों को बीजोपचार करने के लिए उपलब्ध है।

नियोनिकोटिनोइड समुह

(a) इमिडाक्लोप्रिड (कॉन्फिडोर, गांचो) - यह कीटनाशी रस चूसने वाले कीटो जैसे- सफेद मक्खी, हरा तेला, एफिड व चिप्स की रोकथाम के लिए बहुत ही प्रभावी है। मात्रा छिड़काव हेतु Iml/3 litre पानी व बीजोपचार हेतु 06 ग्राम/किलो बीज

(b) थियोमेथोजाम (एकटारा/वघुजर) - यह सफेद मक्खी की रोकथाम के लिए

बहुत ही प्रभावी है। (c) एसेटामिप्रिड (प्राइड)- यह रस चूसने वाले कीटो के लिए प्रभावी है।

(d) क्लोथियोनिडिन- (कल्च, डेन्टोसु) यह कीटनाशी बाजरा व मूंगफली में सफेद लट् नियंत्रण हेतु बीजोपचार के लिए बहुत ही प्रभावी है।

फिनाइलपाइराजोल

फिप्रोनिल (रीजेन्ट) - तना छेदक व दीमक नियंत्रण हेतु बहुत ही प्रभावी कीटनाशी है। मात्रा- गेहू में दीमक नियंत्रण हेतू 5-6ml/kg seed एव चने में दीमक

नियंत्रण हेतु 0.5ml/kg seed काम में लेते है।

 पादपों (Botiniacal) से प्राप्त कीटनाशी
(a) एजाडिरेक्टिन नीम के बीजों से प्राप्त कीटनाशी।

(b) पाइरेथ्रम गुलदाउदी (Crysanthemum) के सूखे फूलों से प्राप्त कीटनाशी (c) निकोटीन तम्बाकु की पत्तियों से प्राप्त कीटनाशी । (d) रोटेनॉन लेग्यूम पौधा डेरिस स्पेशिज की जड़ो से प्राप्त कीटनाशी ।

(e) अन्य पौधे से प्राप्त होने वाले कीटनाशी जैसे- साबाडिला (बीजो से प्राप्त). धरक एंव करज के बीजों एंव पत्तियों से प्राप्त कीटनाशी।

सूक्ष्म जीवों से प्राप्त कीटनाशी

(a) स्पाइनोसेड (ट्रेसर) - सॉयल एक्टिनोमाइसिटीज से प्राप्त कीटनाशी ।

(b) एबामेक्टिन (वर्टीमेक) - सॉयल एक्टिनोमाइसिटीज से प्राप्त कीटनाशी । अन्त प्रवाही (Systemic) कीटनाशी इमेडाक्लोप्रिड (कोन्फिडोर)

थियोमेथोजाम (एकटारा / वध्रुजर)

ऐसेटामीप्रिड (प्रॉइड)

डाईमिथोएट (रोगोर)

मानोक्रोटोफॉस (नुआक्रोन)

ऐसीफेट (ऐसेटॉफ)

ऑक्जिडेमेटोन मिथाइल (मेटासिस्टोक्स आर)

फोरेट (थिमेट) अर्द्ध अन्तःप्रवाही (Semi systemic)

सम्पर्क (Contact) कीटनाशी


क्युनोलफॉस (एकालक्स)

क्लोरपाइरीफॉस (धनुषबाण / डर्मेट)

डाइकोरवॉश (वेपन)- यह धुमक (वाष्पशील कीटनाशी है)

मेलाथियोन (साइमियोन)

वस्थी नाशक (Miticide) -

सब्जियों में वरूथी नाशक (miticide) दवा का निम्न

डाइकोफोल (केल्वेन) 18. SEC @ 1-2ml/lit. पानी

इथियोन (फोस्माइट) S0EC @ 1-2 ml/hit पानी।

सल्फर (वोकाविट) 80%WDG @ 2g/lit पानी। प्रोपेजाइट (ओमाइट) STEC @1-2ml/Mit: पानी।

ऐबामेक्टिन 1.9EC@0.5m/lit पानी। मण्डारण के कीट

अनाजों में लगने वाले भण्डारण के कीट -

(a) खपरा बीटल (ट्रोगोड्रमा ग्रेनेरियम) यह गेंहू जी मक्का व बाजरा में लगने वाला कीट है।

(b) छोटी इल्ली (राइजोपर्धा डोमेनिका) - यह गेहू, जौ, मक्का व बाजरा में लगने वाला कीट है।

(c)आटे की इल्ली (ट्राईबोलियम कंस्टेनियन) - गेंहू जी आदि के आटे में बदबू आना व आटा धूसर से पीले रंग का होना इस कीट के आक्रमण की पहचान है।

(d)धान का शलम कीट (कोरसाइरा सेफोलेनिका - इस कीट के आक्रमण से बाजरा, ज्वार व मक्का के दानों में रेशमी जाला पड़ जाता है तथा भण्डारण के इस कीट के अण्डों पर जैविक नियंत्रण में काम आने वाले कीट जैसे ट्राइकोग्रामा स्पेशिज व क्राइसोपरला कार्निया को पाला जाता है।

(c) दानों का शलभ (सिटोद्रोगा सिरियलेला)- यह खड़ी फसल में व भण्डारण दोनों में लगने वाला कीट है।


दालों में लगने वाले भण्डारण के कीट -

(a) दालों का घुन (चने का घोरा)- कैलोसोचस चाइनेन्सिस भण्डारण में चने के दानों में लगने वाला प्रमुख कीट है इसकी रोकथाम के लिए चने की दाल को सरसों व अन्य खाने योग्य तेल से उपचारित करके भण्डारित करते है। जिससे यह कीट दालों के उपर अण्डे नही दे पाता।

(b) मूंगफली का भृंग (केरियोडोन सेराटसे) मूंगफली के भण्डारण में दानों में लगने वाला कीट

भंडारण में कीटों का नियंत्रण -


सेल्फॉस (एल्यूमीनियम फॉस्फाइड एक गोली 3g) 3 गोली प्रति टन अनाज के हिसाब से बन्द कमरे में प्रयोग करे।

3 ग्राम की एक गोली 1 ग्राम फॉस्फीन गैस रिलीज करती है।

अनाजों का सुरक्षित भण्डारण कम नमी पर करें जैसे धान्य फसलो का सुरक्षित भण्डारण 10-12% नमी पर करे।

दालों का सुरक्षित भण्डारण 8-10% नमी पर करें।

तिलहन व मसालों का सुरक्षित भण्डारण 6-8% नमी पर करें।

फसलों में चूहा नियंत्रण


जिंक फॉस्फाइड @ 2% चूर्ण (47 भाग आटा 2 भाग तेल) से विष युगा तैयार कर 6 ग्राम मात्रा प्रति आबाद बिल डाले।

ब्रोमोडियोलोन (0.005%) केक (single dose anticoagulate) प्रति आबाद बिल डाले। यह अधिक प्रभावी चुहानाशी है।

सुत्रकृमी विज्ञान (Nematology) -


• विज्ञान की वह शाखा जिसमें पादप परजीवी सुत्रकृमी (PPN) व मुक्तजीवी (Free living) सुत्रकृमियों का अध्ययन किया जाता है। सूत्रकृमी विज्ञान कहलाती है।
 
 पादप परजीवी सुत्रकृमी (Plant parasite nematodes) -
 
• परिभाषा - मुख्यतः मृदा में रहने वाले ऐसे धागा सृदृश्य (thread like) अकशेरुकी ( invertibrates) जीव जो सामान्यतः नग्न आंखो से नही देख सकते व इनका शरीर दो समान खण्डों में विभक्त (bilaterally symmetry) होता है व आभासी देहगुहा (Pseudococlomate) पाई जाती हैं। इन जीवों में मुख 6 समान ओष्टों (Hexaradial symmetry) से ढका रहता है तथा इसोफेगस त्रिज्योमिति (Triradial) से बना होता है एवं इन जीवों परिसंचरण तंत्र (Circulatory
system) व श्वसन तंत्र (Respiratory system) का अभाव होता है।

सुत्रकृमी विज्ञान के महत्वपूर्ण बिन्दू


विश्व में सुत्रकृमी विज्ञान के पितामह एच. सी. बास्टियन कहलाते है।

भारत में सुत्रकृमी विज्ञान के पितामह सेसादरी कहलाते है।

विश्व में खोजा गया प्रथम पादप परजीवी सुत्रकृमी एग्युना ट्रिटीसाई था

जिसको जे. टी. नियम द्वारा 1743 में गेहूं की फसल में खोजा गया।

भारत में खोजा गया प्रथम पादप परजीवी सुत्रकृमी मूलगाठ सुत्रकृमी

(Meloidogyne spp.) था जो चाय की जड़ों में केरल राज्य में बारबर वैज्ञानिक द्वारा 1901 में खोजा गया।

सब्जियों में लगने वाला सर्वाधिक नुकसानदायक सुत्रकृमी मिलोयडोगाइन।

इन्कोगनेटा है जो मुख्यतः सोलेनेसी, कुकरबिटेसी व लेग्यूमिनेसी कुल की सब्जियों होता है। सब्जियों के अलावा बागवानी फसलें जैसे अनार, अमरूद व नींबू वर्गीय फलों की जड़ों में गांठे बनाकर उक्टा (Wilt) रोग बढ़ाता है।

सूत्रकृमियों का बाह्य ककाल (body wall) क्युटिकल का बना होता है। सुत्रकृमियों की क्युटिकल सरचनात्मक प्रोटीन से बनी होती है जबकि कीट की क्युटिकल मुख्यतः काइटीन व प्रोटीन से बनी होती है।
 
 
 
 
 
 
 
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