कृषि में बायो प्रोधोगिकी की भूमिका Role of bio-technology in agriculture )Organic farming information in hindi जैविक खेती की जानकारी| (सुपर गेहू (Super wheat),Transgenic plants,Bt. Cotton,Golden rice,Hybrid Rice,डॉ. एम. एस स्वामीनाथन,)
गैहू अनुसंधान निदेशालय (WDR) करनाल, हरियाणा द्वारा गेहूँ की किस्मों में 15 से 20 प्रतिशत उपज में बढ़ोत्तरी लाई गई जिसे सुपर नाम दिया गया।
2. ट्रांसजैनिक पादप (Transgenic plants) -
- पौधों की आनुवांशिक संरचना अर्थात जीन में बदलाव लाने को आनुवांशिक रूपान्तरित पादप कहते हैं परम्परागत पौधों की किस्मों में एक और एक से अधिक अतिरिक्त जीन जो मनुष्य के लिए लाभदायक हो जैव प्रौद्योगिकी द्वारा कृत्रिम रूप से पौधों में डाली जाती है। जैसे बीटी कपास, बीटी बैंगन, बीटी तम्बाकू, बीटी मक्का, रूपान्तरित सोयाबीन, रूपान्तरित सरसों एवं सुनहरा धान
- विश्व की पहली ट्रांसजैनिक फसल तम्बाकु (1987) थी।
- विश्व में ट्रांसजैनिक फसल उगाने में USA का प्रथम स्थान (44%) है बाद में ब्राजील (25%), अर्जेन्टीना (15%), भारत का चौथा स्थान है (7%) एंव चीन का छंटवा स्थान (2%) है।
- विश्व में ट्रांसजैनिक फसल उत्पादन में सोयाबीन का प्रथम स्थान (50%) है इसके बाद मक्का (23%) एवं कपास (14%) का क्रमशः द्वितीय व तृतीय स्थान है।
- विश्व में ट्रांसजैनिक फसलों का उत्पादन सबसे अधिक शाकनाशी रोधी जीनों (Herbicide resistant traits) के लिए किया जाता है।
- 1996 में ट्रान्सजेनिक फसलो का कुल क्षेत्रफल 1.7 मिलियन हेक्टेयर था जो 2016 में बढ़कर 181.5 मिलियन हेक्टेयर हो गया।
- भारत में में ट्रांसजैनिक फसल उत्पादन में बीटी कपास उगाई जाती है जिसका सबसे अधिक क्षेत्रफल गुजरात में है।
(I) बी.टी. कपास (Bt. Cotton)
- अमेरिकी कपास के पौधों में बेसिलस थुरिन्जेनसिस नामक मृदा बेक्टीरिया के जीन प्रौद्योगिकी द्वारा कपास के पौधों में डाला गया है जिसे Bt कपास कहते हैं।
- बीटी कपास में बेसिलस धुरिन्जेनसिस नामक बैक्टीरिया के क्रिस्टल प्रोटीन (Cry gene) पाये जाते है जो डेल्टा एन्डो टॉक्सीन पैदा करते है जो कपास को उसकी प्रमुख लटों (Cotton Boll worms) के प्रकोप से बचाता है। विश्व में सर्वप्रथम बीटी कपास की व्यापारिक खेती 1996 में शुरू।
- .बी.टी. कपास की प्रथम पीढ़ी (Bollgourd-I) के लिए जिम्मेदार केवल Cry-1Ac जीन थी।
- जबकी बी.टी. कपास की द्वितीय पीढ़ी (Bollgourd-II) सन् 2006 में वैश्विक स्तर पर व्यापारिक खेती के लिए दोहरी जीन Cry-1Ac एवं Cry-2Ab से शुरू हुई।
- भारत में बीटी कपास को व्यापारिक खेती के रूप में उगाने की अनुमति आनुवांशिक अभियांत्रिक सहमति समिति (GEAC), पर्यावरण एवं वानिकी मंत्रालय भारत सरकार के द्वारा मार्च, 2002 में दी गई।
- सन् 2002-2003 में भारत में बीटी कपास 50,000 हेक्टेयर में बोयी गई।
- सन् 2015-2016 में भारत में बीटी कपास 12.6mha में बोयी गई।
- इसमें बीटा कैरोटिन की प्रतिशतता बढ़ा दी है जिससे गोल्डन राइस में विटामिन ए की मात्रा अधिक होती है।
- सुपर राइस (Super Rice) -
- सामान्य धान से 25% अधिक उपज देने वाली किस्मों का आविष्कार सुपर राइस के नाम से जाना जाता है।
- इसे डॉ. गुरदेव सिंह खुश ने IRRI मनिला ( फीलिपाइन्स) में विकसित किया।
4. हाइब्रिड धान (Hybrid Rice) -
- विश्व में सबसे पहले हाइब्रिड धान चीन में 1974 में प्रोफेसर लोग पिग यॉन द्वारा विकसित किया गया।
- इसलिए लोग पिंग यॉन को हाइब्रिड धान के पितामह कहते हैं । चीन के बाद हाइब्रिड धान विकसित करने में भारत का द्वितीय स्थान
- भारत में विकसित हाइब्रिड धान की प्रथम किस्म- MGR 1 ( CoRH-1)
- TNAU (कोयम्बटुर) द्वारा विकसित की गई। 5. हाइब्रिड सरसों (Hybrid mustard ) - सरसों की पहली हाइब्रिड किस्म NRC-HB- 506, एवं दुसरी NRC
- HB-101 है जो DRMR, सेवर- भरतपुर द्वारा (2009) विकसित की गई। राष्ट्रीय सरसों अनुसंधान केन्द्र सेवर, भरतपुर (Raj.), 20 अक्टूबर
- 1998 में ICAR के अधीन स्थापित हुआ जो सन् 2009 में डायरेक्ट्रेट रिसर्च ऑफ मस्टर्ड एवं रेपसीड (DRMR) में तब्दील हुआ।
कृषि वैज्ञानिकों का योगदान -
- गैहू विशेषज्ञ (गैहू प्रजनन वैज्ञानिक), भारत में हरित क्रांति इन्ही के द्वारा लाई गई अतः इन्हें भारत में हरित क्रान्ति का जनक माना जाता है।
- इनको विश्व का पहला खाद्य पुरस्कार (1987 में) FAO द्वारा दिया गया।
- इनके द्वारा (2004) में राष्ट्रीय किसान आयोग की स्थापना की गई। भारत में हरित क्रान्ति गेंहू व चावल की बौनी किस्मों के कारण 1966-67 में आई थी।
2.वरर्गिज कुरीयन
- ये श्वेत क्रांति के पितामह के नाम से जाने जाते है।
- इन्होंने वर्ष 1970 96 तक ऑपरेशन फ्लड योजना चलाई।
- ये राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB)- आनन्द, गुजरात के प्रथम अध्यक्ष बने।
- इन्हे दूसरा विश्व खाद्य पुरस्कार 1989 में प्राप्त हुआ।
- अमृता पटेल NDDB आनन्द गुजरात की प्रथम महिला चेयरमेन बनी।
3. डॉ. नॉरमन ई बोरलोग -
- ये विश्व में हरित क्रांति के पितामह के नाम से जाने जाते है।
- इन्हे 1970 में नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ।
- ये अमेरिकन व्हीट सांइटिस्ट थे।
4.डॉ. S.K. वशल
- ये CIMMYT- मैक्सिको में मक्का के वैज्ञानिक है।
- तथा इनको क्वालिटी प्रोटीन मक्का (QPM) के लिए सन् 2000 है। में विश्व खाद्य पुरस्कार प्राप्त हुआ।
- इन्होने मक्का में ट्रिप्टोफेन एवं लाइसीन अमीनो अम्ल की मात्रा बढ़ाने वाले जीन को खोजा एवं मक्का में इनकी प्रतिशत मात्रा बढ़ाई।
5. Dr. K. L. चड्डा
- ये फल वैज्ञानिक (Pomologist) थे।
- इनको सुनहरी क्रांति के पितामह कहते हैं।
- ये ICAR में चारा वैज्ञानिक (Forage breeder) थे।
- तथा ICAR के महानिदेशक (DG) भी रहे है।
7. Dr. A.S. फरोदा -
- ये कृषि विश्वविद्यालय (MPUAT), उदयपुर के प्रथम कुलाधिपती (Vice Chancellor) थे।
- एवं कृषि वैज्ञानिक चयन मण्डल (ASRB) के चेयरमैन भी रहे है।
- हरित क्रांति शब्द W.S. गॉड (USAID) द्वारा 1967 68 में दिया गया।
- सत्त हरित क्रांति शब्द डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन ने सर्वप्रथम दिया।
- हरित क्रान्ति के मुख्य कम्पोनेट अधिक उपज वाली बौनी किस्मों का उपयोग, पौध संरक्षण सामग्री एवं रासायनिक उर्वरकों का उपयोग करना
था।
खेती की वह विधी जिसमे रसायनिक उर्वरको एवं कीटनाशको के बिना या कम प्रयोग से फसलों का उत्पादन किया जाता है, जैविक खेती कहलाती है.इसका अहम उद्देश्य मिट्टी की उर्वरक शक्ति बनाए रखने के साथ साथ फसलों का उत्पादन बढ़ाना है।
- जैविक खेती का मुख्य उद्देश्य यही है कि मिट्टी की उर्वरक शक्ति को नष्ट होने से बचाया जाए और खाने की चीजों जिनका उपयोग हम रोज करते है, उनमे रसायनिक चीजों के इस्तेमाल को रोका जाए।
- फसलों को ऐसे पोषक तत्व उपलब्ध कराना, जो कि मृदा और फसलों मे अघुलनशील हो और सूक्ष्म जीवो पर असरदायक हो ।
- जैविक नाइट्रोजन का उपयोग करके और जैविक खाद और कार्बनिक पदार्थो द्वारा रिसक्लिंग करना।
- खरपतवार, फसलों मे होने वाले रोगो और किट के नाश के लिए होने वाली दवाइयो के छिड़काओ को रोकना, ताकि ये स्वास्थ को नुकसान ना पहुचा सके।
- जैविक खेती मे फसलों के साथ साथ पशुओ की देखभाल, जिसमे उनका आवास, उनका रखखाव, उनका खानपान आदि शामिल है, इसका भी ध्यान रखा जाता है।
- जैविक खेती का सबसे मुख्य उद्देश्य इसके वातावरण पर प्रभाव को सुरक्षित करना साथ ही साथ जंगली जानवरो की सुरक्षा और प्रकृतिक जीवन को सुरक्षित करना है।
- जैविक खेती अपनाने से भूमि की उपजाऊ क्षमता बढ़ती है, साथ ही साथ फसलों के लिए की जाने वाली सिचाई के अंतराल मे भी वृध्दी होती है ।
- अगर किसान खेती मे रसायनिक खाद का प्रयोग नहीं करता और जैविक खाद का उपयोग करता है, तो उसकी फसल के लिए लगाने वाली लागत भी कम होती है।
- किसान की फसलो का उत्पादन बढ़ता है, जिससे उसे लाभ भी ज्यादा होता है ।
- जैविक खाद के उपयोग से भूमि की गुणवत्ता मे भी सुधार आता है ।
- इस विधी के प्रयोग से भूमि के जलधारण की क्षमता बढ़ती है और पानी के वाष्पीकरण मे भी कमि आति है।
- भूमि का जलस्तर तो बढ़ता ही है, साथ ही साथ रसायनिक चीजों के प्रयोग को रोकने से मिट्टी, खाद्य पदार्थ और जमीन मे पानी से होने वाले प्रदूषण मे भी कमि आति है।
- पशुओ का गोबर और कचरे का प्रयोग खाद बनाने मे करने से प्रदूषण मे कमि आति है और इसके कारण होने वाले मच्छर और अन्य गंदगी कम होती है, जिससे बीमारियो की रोकथाम होती है।
- अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार को देखा जाए, तो वहा भी जैविक खेती के द्वारा उतापादित हुये पदार्थो की ज्यादा माँग है।
जैविक खेती मुख्यतः खेती मे, खेती के पारंपरिक तरीको के इस्तेमाल के साथ साथ खेती के पारिस्थितिक और आधुनिक प्रोधोगिकी ज्ञान का गठबंधन है.जैविक खेती के तरीको को हम agro ecology फील्ड मे पढ़ सकते है.खेती के पुराने तरीके मे किसान कृत्रिम, बनावटी कीटनाशको औए पानी मे घुलनशील कृत्रिम शुध्द उर्वरको का उपयोग करता है, जबकि जैविक खेती मे किसान द्वारा प्रकृतिक कीटनाशको और उर्वरक के प्रयोग का विरोध किया जाता है .किसान जैविक खेती मे किसान मुख्यतः फसल चक्रण, जैविक खाद, जैविक किट नियंत्रण और यांत्रिक खेती आदि का उपयोग करते है, जैसे मिट्टी मे नाइट्रोजन के लेवल को सही करने के लिए फलियो को लगाया जाना, प्राकृतिक कीट शिकारियो का प्रोत्साहन किया जाना, फसलों को घूमना आदि इसमे शामिल है।
फसल विविधता (Crop diversity) | जैविक खेती मे फसल विविधता को प्रोत्साहित किया जाता है, जिसके अनुसार एक ही जगह पर कई फसलों का उत्पादन किया जाता है। |
मृदा प्रबंधन (soil management) | मृदा प्रबंधन भूमि प्रबंधन से हम हमारे खेत की उर्वरक क्षमता को बड़ा सकते है .इसे करने के लिए हमे मिट्टी के प्रकार और मिट्टी की विशेषताओ पर ध्यान देना आवश्यक है। |
खरपतवार प्रबंधन (Weed management) | खरपतवार मतलब अनावश्यक वनस्पति जो कि फसलों या पोधों के मध्य मे अपने आप उग आति है और फसलों को मिलने वाले पोषण को स्वयं उपयोग करती है, जिसका निपटारा भी जैविक खेती मे किया जाता है। |
इस प्रकार जैविक खेती के प्रयोग से उत्पादन तो कई गुना बढ़ता ही है, साथ ही साथ वातावरण को भी हानी नहीं पहुचती और खाने के लिए केमिकल मुक्त भोजन भी प्राप्त होता है, जिससे स्वास्थ को भी हानी नहीं होती,यही कारण है कि पढे लिखे युवक भी नौकरी छोड़कर खेती की और रुख कर रहे है और कई गुना लाभ कमा रहे है ।
अगर आपको जैविक खेती से संबन्धित कोई जानकारी चाहिए, तो हमे कमेंट बॉक्स मे अवश्य लिखे साथ मे यह भी बताए कि आपको यह आर्टिक्ल कैसा लगा.
Osm
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