सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

अक्तूबर, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भारत में उगाई जाने वाली प्रमुख फसलें ,खाद्य फ़सलें, व्यावसायिक फ़सलें, बागान फ़सलें,बागवानी फ़सलें,

भारत में कई फ़सलें उगाई जाती हैं, जिनमें शामिल हैं खाद्य फ़सलें:  चावल, गेहूँ, मक्का, दालें और बाजरा व्यावसायिक फ़सलें:  जूट, कपास, गन्ना, तिलहन और तम्बाकू बागान फ़सलें:  रबर, कॉफ़ी, चाय और नारियल बागवानी फ़सलें:  सब्ज़ियाँ और फल अनाज (गेहूं, चावल, मक्का, दालें और बाजरा), वाणिज्यिक फसलें (जूट, कपास, गन्ना, तिलहन और तंबाकू), बागान फसलें (रबर, कॉफी, चाय, नारियल) और बागवानी फसलें (सब्जियां और फल) भारत में चार प्राथमिक फसलें हैं। भारत में कितनी फसलें हैं? भारत में उगाई जाने वाली प्रमुख फसलें चावल, गेहूं, बाजरा, दालें, चाय, कॉफी, गन्ना, तिलहन, कपास और जूट आदि हैं। नहर सिंचाई और ट्यूबवेलों के कारण पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान के कुछ हिस्सों जैसे कम वर्षा वाले क्षेत्रों में चावल उगाना संभव हो पाया है एमएसपी 2024 के तहत कितनी फसलें हैं? अब तक, CACP 23 वस्तुओं के एमएसपी की सिफारिश करता है, जिसमें 7 अनाज (धान, गेहूं, मक्का, ज्वार, बाजरा, जौ और रागी), 5 दालें (चना, अरहर, मूंग, उड़द, मसूर), 7 तिलहन (मूंगफली, रेपसीड-सरसों, सोयाबीन, सीसम, सूरजमुखी, कुसुम, ना...

Central Agricultural Universities भारत की सबसे अच्छी और बेहतर सेंट्रल एग्रीकल्चर विश्वविद्यालय

 Central Agricultural Universities भारत की सबसे अच्छी और बेहतर सेंट्रल एग्रीकल्चर  विश्वविद्यालय जो आप के भविष्य को और बेहतर बना सकते है  ये तीनो विश्वविद्यालय में admisson लेने के लिए आप को intern  एग्जाम देना होता है उस की पात्रता अलग अलग हो सकती है जो समय समय पर आप को वेबसाइट के माध्यम से दी जाती है    1. Central Agricultural University,P.O. Box 23, Imphal-795004, Manipur 2. Rani Laxmi Bai Central Agricultural University,Jhansi, Uttar Pradesh 3. Dr. Rajendra Prasad Central Agricultural University,Pusa (Samastipur)

गेहूं की फसल में ज़िंक डालने से कई फ़ायदे होते हैं

गेहूं की फसल में ज़िंक डालने से कई फ़ायदे होते हैं   **गेहूं की बेहतर बढ़वार के लिए ज़िंक बहुत ज़रूरी है.      इससे पौधों में हरापन आता है और ज़्यादा कल्लों का फ़ुटाव होता है.  **गेहूं की पैदावार बढ़ जाती है.       ज़िंक डालने से ग्रोथ प्रमोटर डालने की ज़रूरत नहीं पड़ती.      ज़िंक की कमी से पौधे छोटे रह जाते हैं और पत्तियां पीले-हरे रंग की हो जाती हैं.      ज़िंक की कमी से फसल पकने में ज़्यादा समय लेती है **गेहूं की फसल में ज़िंक डालने का *तरीका*     जिन खेतों में ज़िंक की कमी हो, वहां पहली जुताई के समय प्रति एकड़ 8 किलो ज़िंक डाल देना चाहिए.          इससे 3-4 साल तक ज़िंक की आपूर्ति होती रहेगी.     अगर खड़ी फ़सल में ज़िंक की कमी दिखे, तो अंकुरण के 3 और 5 हफ़्ते बाद 1 किलो ज़िंक सल्फ़ेट              (हेप्टाहाईड्रेट) और 1 किलो यूरिया का घोल 100 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.

लहसून एक नगदी मसाले की फसल है | लहसून की बीजदर | लहसून के लिए एक हैक्टर खेत की खाद व उर्वरक

लहसून एक नगदी मसाले की फसल है जिसका उपयोग अचार,चटनी,केचप व सब्जी बनाने के काम आता है  लहसून की बीजदर :-    5-6 कुन्टल प्रति हैक्टर(बीजोपचार अवश्य करे)* * **लाइन से लाइन की दूरी 15 सेमी. व पौधे से पौधे की दूरी 7 सेमी. रखकर बुवाई करे !** लहसून के लिए एक हैक्टर खेत की खाद व उर्वरक की मात्रा👇* * 1.बढ़िया सड़ी हुई गोबर की खाद 20-25 टन* * 2.एसएसपी खाद(रकोडिया)-200 किलो* * 3.माइकोराइजा- 12 किलो* * 4.पोटाश(Mop)-100 किलो* * 5.जिंक सल्फेट- 25 किलो* * 6.अगर दीमक की समस्या है तो फिप्रोनील 80G 5 किलो* * 🔹सभी उर्वरक को मिश्रित करके एक तिरपाल पर मिलाकर अंतिम जुताई के समय मिट्टी में मिलाकर लहसुन की बुवाई करे** 🔹भूमि उपचार के लिए 4 kg ट्राईकोडर्मा प्रति हैक्टर काम मे लेना चाहिए!** 🔹बुवाई के एक माह बाद 50 kg नत्रजन खड़ी फसल मे देना लाभकारी होता है ,नत्रजन युक्त उपयोग ज्यादा नही करना चाहिए अन्यथा वानस्पतिक वृद्धि अधिक होती है !** 🔹किसान लहसून खुदाई के 15 दिन पूर्व बोरान 3 ग्राम प्रति लीटर की दर से छिड़काव करने से लहसून को अधिक समय तक सुरक्षित रख सकते है !*

garlic last Spre लहसुन के रोगों को नियंत्रित करने के कुछ तरीके

 नमस्कार सभी किसान भाईयों हम आप के लिए एक और बार लहसून की फसल की बीमारी व उसका उपचार लेकर आए हैं तो आज के इस Blog post में सिर्फ हम आप को अन्तिम स्प्रे की जानकारी देने वालों हैं  लहसुन के रोगों को नियंत्रित करने के कुछ तरीके इस प्रकार हैं:    रोग मुक्त बीज का उपयोग करें : रोगमुक्त लहसुन के बीज का प्रयोग करें और रोपण से पहले बीजों को गर्म पानी से उपचारित करें।    अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में पौधे लगाएं : लहसुन को अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में रोपें और पौधों को अधिक भीड़भाड़ वाला न बनाएं।    फसल चक्र अपनाएं : लहसुन की फसल को 3-4 वर्षों तक गैर-एलियम प्रजातियों के साथ चक्रित करें।    कवकनाशी का प्रयोग करें : उचित कवकनाशकों का प्रयोग करें, ध्यान रखें कि मोमी पत्तियों पर अच्छी तरह से छिड़काव करें। इष्टतम नियंत्रण के लिए कवकनाशकों का प्रयोग बदल-बदल कर करें।    खरपतवार नियंत्रण : फसल के आसपास खरपतवारों पर नियंत्रण रखें।    संक्रमित मलबे को नष्ट करें : सभी संक्रमित फसल अवशेषों को नष्ट कर दें।    पेनिसिलियम क्षय ...

ह्यूमिक एसिड कपास में उपज बढ़ाता है

हां, ह्यूमिक एसिड कपास की उपज बढ़ाता है: ह्यूमिक एसिड, पौधों की वृद्धि को बढ़ाता है और मिट्टी की उर्वरता में सुधार करता है. यह पौधों की जड़ों के विकास को बढ़ाता है, जिससे वे मिट्टी से ज़्यादा पोषक तत्व और पानी अवशोषित कर पाते हैं. ह्यूमिक एसिड, मिट्टी को भुरभुरा बनाता है, जिससे पौधों की जड़ें ज़्यादा बढ़ पाती हैं. यह पौधों में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया को तेज़ करता है, जिससे पौधे हरे-भरे होते हैं और उनकी शाखाएं भरपूर बढ़ती हैं. ह्यूमिक एसिड, मिट्टी में मौजूद लाभदायक सूक्ष्मजीवों को बढ़ावा देता है. ह्यूमिक एसिड, अजैविक तनावों से लड़ता है. ह्यूमिक एसिड, मिट्टी की संरचना में सुधार करता है, जिससे मिट्टी की दीर्घकालिक उर्वरता बेहतर होती है. ह्यूमिक एसिड को पत्तियों पर छिड़ककर या मिट्टी की खाई में लगाकर इस्तेमाल किया जा सकता है

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने गेहूं की कई नई किस्में विकसित की हैं, जिनमें शामिल हैं

  wheat new किस्म  भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने गेहूं की कई नई किस्में विकसित की हैं, जिनमें शामिल हैं:  एचडी-3385: एक जलवायु-स्मार्ट किस्म जो उच्च तापमान का सामना कर सकती है और जल्दी बुआई के लिए उपयुक्त है। इसकी उपज क्षमता लगभग 75 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.  डीबीडब्ल्यू 327 (करन शिवानी): 87.7 क्विंटल/हेक्टेयर की उपज क्षमता वाली एक जलवायु-लचीली, बायोफोर्टिफाइड किस्म। इसे उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्र में खेती के लिए जारी किया गया और 2023 में मध्य क्षेत्र के लिए अधिसूचित किया गया।  एचडी3386: उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र में सिंचित समय पर बुआई की स्थिति के लिए एक उच्च उपज देने वाली किस्म।  WH1402: उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र में प्रतिबंधित सिंचाई स्थितियों के लिए एक उच्च उपज देने वाली किस्म।  एचडी3388: पूर्वोत्तर मैदानी क्षेत्र में सिंचित समय पर बुआई की स्थिति के लिए एक उच्च उपज देने वाली किस्म।  डीबीडब्ल्यू 316 (करन प्रेमा): एक नई उच्च उपज देने वाली बायोफोर्टिफाइड गेहूं की किस्म।  एचडी 3059 (पूसा पछेती): देर से बोई जाने वाली गेहूं क...