टमाटर की खेती का तरीका । टमाटर की खेती के बारे में जानकारी। टमाटर की खेती के विषय में जानकारी ।#Tomato #farming
टमाटर के फल कों सब्जी सलाद व सूप बनाने में प्रयोग किया जाता है। टमाटर की यानी, सास कैचप भी बनाए जाते हैं टमाटर की खेती पूरे विश्व में की जाती हैं ये सबसे कम कीमत वाली फसलों में से एक है क्यू की ये उत्पादन में बहुत अधिक हैं परन्तु इसकी देख रेख भी अधिक हैं। इस लिए आज कल इस फसल को mulch, green House, polly House, आदि के अन्दर लगाना शूरू कर दिया है।
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टमाटर के लिए कुछ महत्वपूर्ण बाते।
जलवायु
टमाटर की फसल के लिए तापक्रम का बहुत बडा योगदान होता है। टमाटर की फसल के लिए सबसे अच्छा तापमान 20°0 से 25 ° 0 C होता है। व टमाटर में अंकुरण के लिए सबसे अ च्छा तापक्रम 2 1 ° से 26° c होना चाहिए। ताप क्रम अधिक होने पर कुता व कल गिरने लग जाते हैं। व अधिक ल्रू चलने पर फलों का रंग व त्वचा भी खराब हो जाती है। 16 ° व 38° तापमान होने पर अंकुरण बहुत कम होता है। इसके परिणाम स्वरूप फल कम लगते हैं व स्वरूप बिगड जाता है। टमाटर में लाल रंग लाइकोपीन के कारण होता है 20-25 ° C से ऊपर इस वर्णक का उत्पादन तेजी से गिरने लगता है। और 30° C से ऊपर इसका निर्माण बन्द जो जाता है। जिससे टमाटर पिला दिखने लग जाता है।
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टमाटर के लिए मृदा. व खेत की तैयारी
टमाटर की खेती के लिए 6_7 P H मान वाली मृदा बहुत अच्छी होती है। परन्तु जल निकास व रेतीली दोमट या दोमट मृदा जिसमें पर्याप्त मात्रा में जीवांश हो इसकी खेती के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। टमाटर की खेती के लिए समतल सतह वाली भूर भूरी भूमि की आवश्यकता होती है।
इसके लिए एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से व 3 _4 बार हैरो से करनी चाहिए।
टमाटर की फसल में बुआई एवं बीज की मात्रा।
टमाटर की पोध नर्सरी में तैयार की जाती है।
खरीफ फसल लेने के लिए पौध जून माह में व गर्मी की फसल हेतु दिसम्बर - जनवरी माह में लगाते हैं।
रोपाई के लिए बिज की मात्रा 400 - 500 Gm / हेक्टर तथा संकर Hybrid Seed 150-200.gm / हेक्टर बीज की आवश्यकता होती है।
बीजों को बुवाई से पूर्व 2 gm कैप्टेन या बाविस्टीन 2 gm / प्रति किलो की दर से उपचारित करें। बीजों के मध्य 5-7 cm की दूरी रखे।
टमाटर की पौध रोपण का समय
टमाटर के पौने 10_15.c m व 4_5. सप्ताह पूराने होेने पर उनका रोपण खेत में कर देना चाहिए। पौधों को खेत में शाम के समय लगाए । कतार से कतार व पौधे से पौधे की दूरी 45×45 CM रखे।व Hybrids Seed में 90×45 cm दूरी रखे।
टमाटर की . उन्नत किस्में
टमाटर की बहुत सारी किस्में हैं जो अलग -2 जलवायु व मृदा के आधार पर अलग है इन सभी किस्मों का उत्पादन व स्वाद भार चमक रंग आकार भी अलग होता है। कुछ किस्में इस प्रकार है।
पूसा रूबी, इसा अर्ली डवार्फ, मारग्लोब, पंजाब छ्वारा , रोमा, पंतं बहार, अर्क ा विकास, , हिसार अरूण, MTH 6, HS 101, पंजाब केसरी, pant t-1, अर्क ा सोरभ,
संकर किस्में - कर्नाटक संकर, राशिम, सोनाली, पूसा संकर - 1, पूसा संकर -2,ARTH - 3, HOi 606, NA 601, BSS20, अविनाश -2,
खाद एवं उर्वरक (Manure and fertilizer) टमाटर की अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए भूमि में पर्याप्त मात्रा में खाद एवम् उर्वरकों का प्रयोग आवश्यक है । अतः प्रति हेक्टेयर की दर से 20-25 टन सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद और तत्व के रूप में 60 कि.ग्रा. नत्रजन, 80 कि. ग्रा. फास्फोरस एवं 60 कि.ग्रा. पोटाश बुआई के पहले दें । पौधे लगाने के 30 दिन व 50 दिन बाद 30-30 कि.ग्रा. नत्रजन की मात्रा खड़ी फसल में देकर सिंचाई करें ।
टमाटर की चिटकन की समस्या रोकने के लिए 0.3 प्रतिशत बोरेक्स का छिड़काव फल लगने के समय व इसके 15 दिनों के बाद करें तथा तीसरा छिड़काव जब फल पकने शुरू हों तब करें ।
सिंचाई (Irrigation): पौधरोपण के बाद दो-तीन दिन तक फुहारों से हल्की सिंचाई करे या रोपण के पश्चात् हल्की सिंचाई इस प्रकार करें जिससे पौधे अच्छी प्रकार से वृद्धि कर सकें। सर्दी में 8 से 10 दिन व गर्मी में 5-6 दिन के अन्तराल से आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए ।
निराई-गुड़ाई (Interculture operations): पौध लगाने के 20 से 25 दिन बाद प्रथम निराई-गुड़ाई करें । आवश्यकतानुसार दुबारा निराई-गुड़ाई कर खेत से खरपतवारों को निकालें । अनिर्धारित वृद्धि वाली किस्मों को सहायता देने के लिए छड़ियाँ (Staking) लगाकर बाँध देना चाहिये। इससे फलों की गुणवता तो बढ़ती ही है साथ ही वे सड़ने से भी बच जाते हैं।
प्रमुख कीट एवं व्याधियाँ (Important insect pests and diseases):- कीट ( Insect pests)
फल छेदक (Fruit borer): इस कीट का डिंभक फल में प्रवेश कर गूदा खाता रहता है व फल को बिल्कुल बेकार कर देता है। इसकी रोकथाम के लिए मैलाथियान 50 ई.सी. 1 मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
हरा तेला (Jassid): ये छोटे-छोटे कीड़े हैं तथा पत्तियों का रस चूसते हैं एवं विषाणु रोग फैलाते हैं। इनकी रोकथाम के लिए मिथाएल डिमेटान 0.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी का छिड़काव 15 दिन के अन्तराल से करना चाहिए।
सफेद मक्खी, पर्ण जीवी, हरा तेला व मोयला पौधों की पत्तियों व कोमल शाखाओं से रस चूसकर कमजोर देते हैं । सफेद मक्खी टमाटर में विषाणु रोग फैलाती है। नियन्त्रण के लिए डाइमेथोएट 30 ईसी या मेलाथियान 50 ईसी एक मि.ली. का प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें। आवश्यकता पड़ने पर यह छिड़काव 15 से 20 दिन बाद करें कटुआ कीट (Cut worm): ये कीट रात के समय पत्तियाँ खाते है एवं दिन के समय छिपे रहते हैं। पौधों को जमीन की सतह से काटकर गिरा देते हैं। इनके नियंत्रण के लिए खेत में फसल रोपाई से पूर्व मिथाईल पैराथियान (2%) धूल को 20-25 किलोग्राम प्रति हैक्टर की दर से भूमि में अच्छी तरह से मिला दें। व्याधियाँ (Diseases):- - कर
आर्द्रगलन (Damping off): टमाटर का यह एक गम्भीर रोग है जो फफूंद पीथियम जाति (Pythium spp.) या राइजोक्टोनिया जाति (Rhizoctonia spp.) या फाइटोफ्थोरा जाति (Phytophthora spp.) के कारण होता है। रोग के प्रकोप से पौधे का जमीन की सतह पर स्थित तने का भाग काला पड़ जाता है तथा नन्हे पौधे गिर कर मरने लगते हैं । यह रोग भूमि एवं बीज के माध्यम से फैलता है।
गुच्छा मुच्छा रोग (Mosaic): यह एक विषाणु जनित है। इससे प्रभावित पौधे की पत्तियाँ व तना सिकुड़कर छोटे ह जाते हैं व पौधों की बढ़वार रूक जाती है। रोकथाम:- रोगी पौधों को जड़ सहित उखाड़कर जला दें।
रोगग्रस्त फसल पर मैलाथियान, मैटासिस्टॉक्स या डाइमिथोएट 2 ग्राम दवा प्रति लीटर के घोल का छिड़काव करें। के पर्ण कुंचन (Leaf curl): इस रोग का विषाणु सफेद मक्खी (White fly) द्वारा फैलाया जाता है। पत्तियाँ छोटी पौधा झाड़ीनुमा, अविकसित, शाखाएँ छोटी, पत्तियाँ विभिन्न प्रकार से मुड़ी-सिकुड़ी व टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती हैं। रोकथाम:- रोगग्रस्त पौधों को उखाड़कर जला दें। सफेद मक्खी की रोकथाम के लिए डाइमिथोएट नामक कीटनाशी का 1 मि.ली प्रति लीटर के घोल का छिड़काव करें। बीज जमाव के बाद क्यारी को एग्रोनेट जाली से ढक दें। अगेती झुलसा (Early blight): इस रोग का कारण अल्टरनेरिया सोलनाइ नामक फफूंद है। इस रोग में पत्तियों पर गोल काले व भूरे धब्बे दिखायी देते हैं व पत्तियाँ झड़ जाती है। रोकथामः- 1. सभी रोगग्रस्त पौधों को उखाडकर जला दें। 2. रोग के लक्षण परिलक्षित होते ही ब्लाईटॉक्स 2 ग्राम प्रति लीट के हिसाब से छिड़काव 14 दिन के अन्तर से करें
सूत्र कृमि रोग (Root knot nematode): यह एक मूल ग्रन्थ रोग है जिसमें पौधों की जड़ो में गाँठें बन जाती हैं। यह रोग मेलायडोगायनी (Meloidogyne) के कारण होता
है । रोकथाम :- 1. रोग अवरोधी जातियों का प्रयोग करें। 2. पौध रोपण से पूर्व 25 किलो कार्बोफ्यूरॉन 3 जी प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में मिलायें ।
सन बने उत्तर भारत में अप्रेल - मई के महीनों में टमाटर के 1 फल सूर्य के प्रकाश के सीधे सम्पर्क में आने से सफेद पड़ने लगते हैं। नियन्त्रण के लिए ऐसी किस्मों का चयन करें, जिनमें पत्तियाँ अधिक निकलती हों । सिंचाई की अच्छी व्यवस्था रखें । टमाटर की दो-तीन पंक्तियों के बीच सनई या ढैचा लगायें ताकि छाये से फल खराब न हों ।
तुड़ाई व उपज (Harvesting and Yield):
टमाटर के फलों को जब उनकी बढ़वार पूरी हो जाये तथा लाल व पीले रंग की धारियाँ दिखने लगे उस अवस्था मे तोड़ लेना चाहिए व कमरे में रख कर पकाना चाहिए। साथ ही साथ अधपके टमाटर को लम्बे स्थानों तक भेजा जा सकता है । खेत से टमाटर तोड़ने के पश्चात् रोग ग्रसित सड़े गले इत्यादि फलों को सर्वप्रथम छाँट कर अलग कर देना चाहिए । आकार के अनुसार वर्गीकरण कर बाजार में भेजने पर अच्छा बाजार भाव मिलता है । टमाटर की उपज किस्म, बुआई की विधि, खाद व उर्वरकों की मात्रा, मौसम आदि पर निर्भर करती है। टमाटर की औसत उपज 300 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है ।
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