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खेती लम्बे समय तक चलने वाला उद्योग है, जिसमें जमीन फैक्ट्री है, जीवाणु कर्मचारी हैं और फसल उत्पाद है। आज की मशीनी युग में समझाने वाली परिभाषा, किन्तु असली परिभाषा है, जो प्रकृति ने बनाई है। अर्थात् जंगल (प्रकृति के खेत) में जिस प्रकार उत्पादन होता उसमें सभी वनस्पतियाँ जीव-जन्तु अपना कार्य करते हैं। और हिस्सा पाते हैं। मनुष्य के खेती करने की शुरूआत करने से पहले अन्य जीवों के साथ मनुष्य भी जंगल से ही भोजन प्राप्त करता था। फिर धीरे-धीरे खेती की शुरूआत की और आज हम एकल फसल उगा रहे हैं। हमारे द्वारा बनाये गये तंत्र में प्रतिवर्ष अनेक बाधायें आती है और फसलोत्पादन में बाहरी आदानों पर निर्भर रहना पड़ता है। जबकि जंगल के तंत्र में बाहरी आदान न के बराबर होते हैं और वे आज भी अच्छी तरह चल रहे हैं। हाँ मनुष्य के द्वारा लकड़ी व अन्य वनोत्पाद के अति दोहन से जंगलों का संतुलन बिगड़ रहा है। यदि हम जंगल के मंत्र की कुछ निम्न बातें खेती में भी अपना लें, तो निश्चय ही लम्बे समय तक खेती भी बहुत कम बाधाओं के साथ सफलता से हो सकती है।
चार वर्ष का फसल चक्रः प्रत्येक किसान को अपने पास उपलब्ध भूमि के चार हिस्से कर इस प्रकार फसल चक्र अपनाना चाहिए कि प्रत्येक हिस्सा चौथे वर्ष खाली रहे अर्थात् उसे परती छोड़ जाये और उसमें चारे वाली फसलें उगाकर पशुओं को चराया जाये और उनका मल-मूत्र खेत में ही छोड़ दिया जाये। इससे जमीन को आराम मिलेगा और उपजाऊपन कई गुना बढ़ जायेगा। साथ ही कीड़े-रोग-खरपतवार का भी चक्र टूटने से उनका प्रकोप बहुत कम हो जायेगा। शेष तीन हिस्सों में निम्न चार वर्षीय फसल चक्र (भूमि, जलवायु व उपलब्ध साधनों के आधार पर) प्रत्येक को बारी-बारीसे चक्रीय क्रम में अपनाया जावे। इसके अलावा कुछ एक वर्षीय फसलें जैसे गन्ना, अरहर, अरंडी, मुलहठी (औषधीय पौधा) आदि को अन्तर फसल अर्थात् इन फसलों के बीच लगाया जा सकता है।
ये फसल चक्र इसलिये अपनाया जाना जरूरी है, ताकि उत्पादन के साथ-साथ भूमि की उर्वरता बनी रहे, जिसके लिये अलग से लागत नहीं लगानी है। सिर्फ प्रकृति के द्वाराबनाई विभिन्न फसलों को बारी-बारी से स्थान मिलता रहे। इसमें ध्यान रखने वाली बातें निम्न हैं:
1. प्रतिवर्ष एक दलहनी फसल अवश्य लीजाये।
2. तीन वर्ष में कम से कम एक बार 2 माह के लिये हरी खाद (ढेंचा, लोबिया आदि)अवश्य ली जाये।
फसलों का चयन किसानों को अपनी और बाजार की आवश्यकता को समझकर तथा उपरोक्त दो बातों को ध्यान में रखकर करनी चाहिए। जीवाणु खाद (बायो फर्टिलाइजर) का प्रयोग: जंगलों में अनेक तरह के लाभदायक जीवाणु स्वयं ही अपना परिवार उचित स्तर तक बनाये रखते हैं, किन्तु खेती में हमने रसायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रयोग से इन्हें लगभग नष्ट ही कर दिया है। कुछ अन्य कारक जैसे ट्रैक्टर द्वारा जुताई व भूमि में जैविक पदार्थों की कमी ने भी इन्हें नष्ट करने में सहयोग दिया है। अत: इन जीवाणुओं की संख्या बढ़ाना, स्वस्थ व कम लागत की खेती के लिये
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