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गेहू के खरपतवार व खरपतवारनाशी की मात्रा,उपयोग समय,upyog ki matra की विधि

     आप सभी किसानो के लिए हम एक गेहू के खरपतवार के लिए समाधान ले कर आये जो आप के गेहू की फसल में होने वाले सभी खरपतवारो को जस से समाप्त करेगा |       गेहू में उगने वाले खरपतवार कुछ इस प्रकार है  गेहुसा (गुल्ली -डण्डा)-फेलेरिस माइनर हिरनखुरी जंगली जई बथुआ कृषणनील    नियंत्रण आइसोप्रोटयुरान 750 gm 25-3० दिन बाद  सल्फोससल्फुरान 20 gm / ha. 2-4-d का 0.5 kg / ha. मेटस्ल्फुरान 4-5- gm /ha.   खरपतवार नियंत्रण के लाभ पोधो में किसी भी प्रकार का रोग आने की सम्भावन नही होती. . फसल में उर्वरको की कमी पोधो को नही होती. फसल स्वास्थ्य अछा रहता है . फसल को अधिक सिचाई की आवश्यकता नही. फसल की गुणवता अच्छी. फसल के दानो में किसी भी प्रकार की कोई मिलावट नही  फसल की उपज अधिक आना. फसल का समय में तेयार होना. फसल कटाई में आने वाली समस्या से निजात. बाजार में उपलब्ध गेहू के खरपतवारनाशी पादप संरचना व कार्यिकी में किसी कारणवश आये परिवर्तन, जो उनको नुकसान पहुंचाकर उनका आर्थिक महत्व एवं उपज घटा देते हैं, उनको पादप रोग, बीमारी अथवा पादप व्याधि कहते हैं। अध्ययन की सुविधा के लिए, पौधों के रोगों अथवा बीमारियों को सामान्

सफलता का मंत्र: बहुआयामी कृषि तंत्र । खेती का मंत्र ः. I भारतीय खेती करने के तारिके

    खेती लम्बे समय तक चलने वाला उद्योग है, जिसमें जमीन फैक्ट्री है, जीवाणु कर्मचारी हैं और फसल उत्पाद है। आज की मशीनी युग में समझाने वाली परिभाषा, किन्तु असली परिभाषा है, जो प्रकृति ने बनाई है। अर्थात् जंगल (प्रकृति के खेत) में जिस प्रकार उत्पादन होता उसमें सभी वनस्पतियाँ जीव-जन्तु अपना कार्य करते हैं। और हिस्सा पाते हैं। मनुष्य के खेती करने की शुरूआत करने से पहले अन्य जीवों के साथ मनुष्य भी जंगल से ही भोजन प्राप्त करता था। फिर धीरे-धीरे खेती की शुरूआत की और आज हम एकल फसल उगा रहे हैं। हमारे द्वारा बनाये गये तंत्र में प्रतिवर्ष अनेक बाधायें आती है और फसलोत्पादन में बाहरी आदानों पर निर्भर रहना पड़ता है। जबकि जंगल के तंत्र में बाहरी आदान न के बराबर होते हैं और वे आज भी अच्छी तरह चल रहे हैं। हाँ मनुष्य के द्वारा लकड़ी व अन्य वनोत्पाद के अति दोहन से जंगलों का संतुलन बिगड़ रहा है। यदि हम जंगल के मंत्र की कुछ निम्न बातें खेती में भी अपना लें, तो निश्चय ही लम्बे समय तक खेती भी बहुत कम बाधाओं के साथ सफलता से हो सकती है। चार वर्ष का फसल चक्रः प्रत्येक किसान को अपने पास उपलब्ध भूमि के चार हिस्से