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मटर (Pea) |
6. मटर (Pea) - पाइसम सेटाइवम
मटर की दो प्रजातिया पाई जाती है।
1. फील्ड पी पाइसम सेटाइवम वै आरवेन्स बीज या दाल
के लिए ।
2. गार्डन पी पाइसम सेटाइवम वै. हॉटेन्स (टैबल पी) सब्जी या केंनिंग
के लिए।
उत्पत्ति- भारत
मटर में प्रोटीन 25 प्रतिशत, कार्बोहाइट्रेट 64
प्रतिशत पाया जाता है।
मटर डिब्बाबंदी (Canning) के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है।
Tendrometer से मटर की परिपक्वता
नापते हैं।
दाल व हरी सब्जी दोनों के लिए खेती की जाती है।
देश में क्षेत्र व उत्पादन में प्रथम स्थान
रखता है उत्तरप्रदेश।
राजस्थान में जयपुर ।
जलवायु (Climate)
ठण्डी जलवायु का पौधा है।
मटर की बुआई करते समय व अंकुरण हेतु 22°C
तापमान होना चाहिए।
अच्छी पैदावार हेतु- 15-25 °C तापमान उपयुक्त रहता है।
अतः मटर की बुआई 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक कर देना चाहिए।
मटर का पौधा पाले के प्रति संवेदनशील है।
मृदा (Soil) -
दोमट व रेतीली मृदा उपयुक्त है। वर्गीकरण (Classification)
- दो प्रकार की किस्में।
1. उद्यान मटर (गार्डन पी ) -
पाइसम सेटाइवम वै
हॉरर्टेन्स हरि सब्जी के लिए उगाते है इसमें सफेद रंग के फूल आते है तथा फलियों को हरी अवस्था में तोड़ते है।
→ हिसार हरित- 1,
→ लिटिल मार्केल,
जवाहर मटर - 1
अर्केल,
मिटिओर,
(GC - 141)
→ साल्विया (सम्पूर्ण फली खाने योग्य)
→ अर्का अजीत पाउडरी मिल्ड्यू के प्रति रोगरोधी।
→ हरभजन सबसे जल्दी पकने वाली।
2 बीज के लिए (फील्ड पी.) पाइसम सेटाइवम वै अरबेन्स
लाल रंग के फूल आते है तथा दाने, छोले, हरा चारा व हरी खाद के लिए उगाई जाती है।
अर्पना (HFP-4) - भारत की पहली संकर किस्म है।
आजाद P-1,
पन्त उपहार
हरा बौना
बोनवीले
किस्मे
→ रचना, T-163, RPG-3, DMR, सपना, स्वाति, हंस, स्वर्ण रेखा
बीज दर (Seed Rate) -
दाने के लिए 75-100 Kg/ha.
अगेती एवं सब्जी के लिए 100-120 Kg/ha.
कतार से कलार व पौधे से पौधे की दूरी 30×10
cm
अंकूरण अधोभूमिक (Hypogeal) होता है।
बीज उपचार FIR विधि द्वारा
F (Fungicide) = बाविस्टीन -
(Insecticide) क्लोरोपाइरिफॉस या
क्यूनालफॉस
R (Rhizobium) = राइजोबियम
रोग (Diseases) -
1. छाछया रोग (पाउडरी मिल्ड्यू) ईरीसाईपी पॉलीगोनी कवक
नियंत्रण गंधक का चूर्ण 25 kg/ha का बुरकाव या 0.5% केराथेन का छिड़काव करें।
सुखा रोग (Wilt) फ्युजेरियम ऑक्सीइस्पोरियम कवक नियंत्रण
बाविस्टन 3g/kg बीज उपचारित करें।
1. तना मक्खी
2. लीफ माइनर
3. पोड बोरर
7. चना (Gram) साइसर एराइटिनम
कुल (Family) लेग्यूमिनेसी ।
इसको चिक पी या बंगाल ग्राम या दलहन फसलों का
राजा भी कहते है।
उपकुल पेपिलिएसी।
उत्पत्ति दक्षिण-पश्चिमी एशिया (अफगानिस्तान)
विश्व का 65% क्षेत्र एवं 80% चने का उत्पादन भारत में होता है।
यह राजस्थान की महत्वपूर्ण रबी दलहन फसल है।
चना बारानी खेती हेतु उपयुक्त है।
प्रोटीन 21 प्रतिशत।
चने में Ca, लोहा, नाइसीन की अधिक मात्रा
होती है।
अंकुरित चने में विटामिन C पाया जाता है जो स्कैवी रोग के निदान में
उपयोगी है।
भारत में क्षेत्रफल में MP> Raj>
UP
दलहनी फसलों में चना भारत की मुख्य फसल है व
चने के बाद अरहर का स्थान है।
चने की पत्तियों में खटास मेलिक अम्ल (90–96%) तथा ऑक्जेलिक आय (4 - 10%) की उपस्थिति के कारण होती
है।
यह स्वपरागित (C3) पौधा है।
अंकुरण अधोभूमिक होता है।
जलवायु (Climate) -
ठण्डी व शुष्क ।
लेकिन पाला के प्रति संवेदनशील है।
चने की फसल बौने के तुरन्त बाद एंव फूल आते समय
वर्षा का होना हानिकारक है।
दोमट मृदा व अच्छी जल निकास वाली।
चने के लिये ढैले युक्त (Clods) भूमि उपयुक्त रहती है।
साइसर वंश में दो प्रजातिया पाई जाती हैं
1. देशी चना या भूरा चना (Cicer aretinum )
गुणसुत्र 2n=14, 16
यह भारत में मुख्यतः बौया जाता है।
इसमें शाखाऐं अधिक होती है। बीजों का रंग भूरा
या पीले रंग का होता है।
बीज का आकार छोटा होता है।
seed index 17-26g (100 दानों का वजन)
2.काबुली / सफेद चना (Cicer
kabulim)
गुणसुत्र - 2n 16
बीजों का आकार बडा व रंग सफेद होता है
उपज देशी से कम होती है।
बीज सूचकांक (Seed index)
26-45g (100 दानों का वजन )
बीजदर (Seed Rate)
देशी - 60- 80Kg/ha. तथा देरी से बुआई हेतु 90
- 100kg/ha. (दूरी30X10c)
30-00) का काबुली - 80-100 Kg. /ha
बीज उपचार (Seed treatment )
-
F.LR. (Fungicide+Insecticide+Rhizobium culture) विधि द्वारा।
जैसे- बाविस्टीन 3g/kg seed + क्लोरीपाइरिफॉस 450ml/
100kg seed
राइजोबियम 3 पैकेट / 100kg
seed
बुआई समय (Sowing Time) -
मैदानी क्षेत्रों में अक्टूम्बर का दूसरा
पखवाड़ा बुआई का उपयुक्त समय
पछेती बुआई करने से फली छेदक कीट का प्रकोप
ज्यादा होता हैं। ज्यादा अगेती बुआई करने पर सूखा (Wilt) रोग का प्रकोप होता है।
बारानी फसल हेतु नमी के लिए अधिक गहराई (8-10 सेमी.) पर बीज की बुआई करें।
किस्में (Varieties) –
1. देशी चने की किस्में
→ अवरोधी - यह उक्टा (Wilt)
रोग रोधी किस्म है।।
→ C-235- पछेती व असिंचित
क्षेत्रों के लिए उपयुक्त हैं।
→ RS-10, RS-11- अल्पसिंचित क्षेत्रों के
लिए उपयुक्त है।
→ RSG-2 (किरण) यह Rs-10 के mutation से विकसित असिचित अगेती
फसल के लिए उपयुक्त किस्म है।
RSG-888 (अनुभव) विकसित किस्म है।
यह विल्ट रोधी, वर्षा आधारीत दुर्गापुरा से
→ RSG-896 (अर्पण) → RSG-902 (अरूणा) विल्ट व फली छेदक रोधी किस्म है। सूखा व फली
छेदक रोधी किस्म है।
→ GNG- 469 (सम्राट) - सिंचित व बारानी खेती हेतु। GNG-663 (वरदान) - सिंचित क्षेत्रों हेतु । GNG- 1958- (मरूघर) - 25किंवटल / हेक्टेयर उपज
→ पूसा- 256 (BG-256) असिंचित क्षेत्रों के लिए
उपयुक्त।
→ ICCC-2 कम समय में पकने वाली।
→ दाहोद यलो, RSG- 974
→ ICCV-10 (प्रगती)राधे, पूसा 209, 212, अर्पणा,
→ GNG-1581 (गणगौर)- सिंचित क्षेत्र के लिए उपयुक्त।
1. काबुली चने की किस्में -
→ K-4, K-5, C-104, L-550, GNG 1292
→ गौरव, गिरनार,
निपिंग / टॉपिंग (Nipping)
–
सदाबहार
देशी चने की फसल में निपिंग / टॉपिंग की क्रिया जब पौधे 20 सेमी
फसल 35 दिन की हो जाये तब करनी चाहिए।
जिससे फूल व फलिया अधिक बनती है।
पौधे की उपरी पत्तियों में Nipping या Topping की क्रिया करते हैं।
निपिंग की क्रिया हेतु Tiba @ 75PPM का छिड़काव करते है।
यह क्रिया भेड़ों के झुण्ड को खड़ी फसल से
गुजार कर भी की जाती है।
उर्वरक (Fertilizer) -
20N: 40P प्रति हेक्टेयर ।
पाले से बचाव हेतु 0.1% H. SO, (तेजाब) का छिड़काव करें।
सिंचाई (Irrigation) -
सभी दलहनी फसलों में सिंचाई फूल आने से पूर्व व
फली बनते करते है।
तराई क्षेत्रों में लाही और चने की मिश्रित
खेती काफी प्रचलित है।
खरपतवार नियंत्रण -
मुख्य खरपतवार प्याजी (एस्फोडिलस ट्यूनिफोलियस) है।
Tribunil @ 2.5 kg/ha. बुआई के समय छिड़काव करे।
फ्ल्युक्लोरेलीन (Basaleen)
0.5kg/ha बुआई पूर्व 750 ली. पानी में छिड़काव करें।
पेन्डीमेथालीन 30 EC 600g/600 ली. पानी में Pre emergence छिड़काव करें।
उक्टा रोग (Wilt disease)
यह फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरियम नामक कवक से फैलता
है।
अगेती बुआई ना करें तथा बीज की बुआई गहरी (6-8 से.मी.) करें। बीज उपचार बावस्टिीन 2.5g/किग्रा. बीज से उपचारित करें।
रोग रोधी किस्में बौये जैसे अवरोधी व विकास।
फसल चक्र रोग प्रभावित खेत में 3 वर्ष तक चने की फसल न बौये।
झुलसा (Ascochyta
blight)
यह पश्चिम भारत में एस्कोकाइटा नामक कवक द्वारा
फैलती है।
नियंत्रण - 0.3 प्रतिशत कॉपर
ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव करें।
रोग रोधी किस्मे बौये जैसे गौरव, C-235
1
कीट प्रबन्ध (Insect management) -
1. कट वर्म (काटने वाली सुण्डी) एग्रोटिस इप्सीलॉन ।
नर्सरी अवस्था के पौधे को रात के समय मृदा की
सतह से काटती है।
नियंत्रण – मिथाईल पैराथियान 2% Dust @ 25 Kg/ha. भुरकाव करें। क्युनालफॉस 1.5% चूर्ण @ 25kg/ha. जुताई के समय भुरके या खड़ी
फसल में शाम के समय देवें।
2. फली छेदक (Helicoverpa
armigera) –
यह सुरजमुखी, टमाटर, कपास आदि का प्रमुख कीट
है। यह पत्तीया खाती है और बाद में फली में छेद करके दाना खाती है।
नियंत्रण - Bt. @ 1.0 kg/ha
या NPV @ 250-500 LE/ha. काम में लेवे।
मेलाथियान पॉवडर 5% dust @ 25kg/ha. की दर से बुरकाव करें।
मोनोक्रोटोफोस दवा Iml/lit. की दर से छिड़काव करे। 3. दीमक (Odontotermes
obesus) बीजों को 450 ml क्लोरीपाइरीफॉस दवा प्रति / हे. से उपचारित करे।
उपज (Yield)
सिंचित क्षेत्रों से 20-25quha
असिंचित क्षेत्रों से 8-12qt/ha.
8. अरहर (Pigeon pea) केजेनस केजन
इसे रेड ग्राम / तूर भी कहते है। कुल लेग्यूमिनेसी, गुणसुत्र 2n 22
दाल वाली फसलों में सर्वाधिक सूखा सहन करने
वाली फसल है।
उत्पत्ति – अफ्रीका
शस्य फसलों में अरहर सबसे लम्बी अवधि की फसल
होती है।
अरहर का कटाई सुचकांक (Harvesting
index) (19%) सबसे कम हो
अंकुरण- अन्तःभूमिक (Hypogeal)
होता है।
इसका मुख्य कीट तूर पोड फ्लाई है।
इसकी मुख्य बीमारी स्र्स्टलिटी मोजेक (sterility
mosaic) है जो वाइरस द्वारा होता है एंव वाइरस का
संवहन माइट (Aceria cajani mite) द्वा होता है।
केजेनस केजन वेरायटी बाइकोलर. है।
वर्गीकरण
1. यह बहुवर्षीय, लम्बी व अधिक शाखाओं युक्त होती यह मुख्यत
उत्तर भारत में उगाई जाती है। केजेनस केजन वेरायटी फ्लेवस
2. यह एकवर्षीय व पौधा छोटा होता है। यह दक्षिण भारत में उगाई
जाती है।
बुआई एंव बीजदर -
बीजदर 12 15 kg/ha
बुआई का उपयुक्त समय जून का प्रथम पखवाड़ा है।
खाद एंव उर्वरक N 20 P80 K40 kg/ha. देते है। किस्में
1. लघु अवधि की किस्में.
UPAS 120- यह किस्म 120 से 125 दिन में पक कर होती है।
Prabhat- यह जल्दी पकने वाली किस्म
है जो 110 से 120 दिन पक कर तैयार होती है।
ICPH - 8 – यह अरहर का प्रथम
हाईब्रिड हैं जो हेदराबाद द्वारा विकसित
की गई है। अन्य किस्में PPH - 4, ICPL- 15
2. मध्य अवधि की किस्में -
मुक्ता यह किस्म उक्टा (विल्ट) रोग के प्रति प्रतिरोधी है।
अन्य किस्में - शारदा, बसन्त, पारस
3. दीर्घ अवधि की किस्में -
पूसा-9
उपज 20-25 क्विं/ha.
9. सोयाबीन ग्लाईसीन मेक्स- (दलहनी
+ तिलहनी)
कुल - • लेग्यूमिने
उत्पत्ति - चीन
इसे Wonder Crop या Yellow jewei भी कहते है।
सोयाबीन दलहन व तिलहन दोनों प्रकार की फसल है
विश्व में वानस्पतिक तेल के स्रोत में प्रथम
स्थान है।
विश्व में सोयाबीन उत्पादन में USA प्रथम स्थान पर है।
भारत में मध्यप्रदेश प्रथम, महाराष्ट्र द्वित्तीय एवं राजस्थान तृतीय स्थान
पर है।
• इसकी फली को पोड (Pod) कहते है।
→ सोयाबीन C, व खरीफ का लघु दिवस प्रिय पौधा है।
सोयाबीन स्व-परागित फसल है।
राजस्थान मे झालावाड़ जिला सोयाबीन के उत्पादन
व क्षेत्रफल में प्रथम
* सोयाबीन में प्रोटीन - 40-42 प्रतिशत पाई जाती है तथा
तेल 20. प्रतिशत पाया जाता है।
• सोयाबीन की प्रोटीन में लाईसीन की मात्रा सबसे
ज्यादा पाई जाती है।
जलवायु
* उष्ण मुख्यतः गर्म व नम जलवायु चाहिए।
अंकुरण हेतु 15- 32°C तापमान चाहिए।
वर्षा -600 से 850mm वर्षा की आवश्यकता पड़ती है।
मृदा - काली चिकनी (Clay soil) व गहरी दोमट मृदा उपयुक्त रहती है।
बीज दर - 70 से 80 Kg/ha.
दूरी 30-45 X 15-20cm.
प्रति हेक्टेयर पौधों की संख्या 3 लाख
सोयाबीन का बीज 3-4cm गहराई पर बोया जाता है। बुआई का समय 15 जून से 15 जूलाई।
सिंचाई फूल आने से पूर्व व फली बनते समय करनी
चाहिए।
बीज उपचार FIR विधि द्वारा
" राइजोबियम जापोनिकम कल्चर
का प्रयोग करते है।
किस्में (Varietes) -
1 भारत व राजस्थान के लिए उपयुक्त किस्में
→ T-49 (छोटे पीले दाने, इस किस्म में बीजदर 50 किग्रा/हेक्टेयर रखते है।)
→ T-1 (फलिया तड़कने की समस्या
अधिक है)
→ गौरव (पीले दानों की बौनी किस्म है।)
→ मोनेटो (पीले दानों की बौनी किस्म)
→PK-472, NRC-12
2 USA से आयातित किस्में :
पंजाब-1 अंकुर
→ Bragg. ली (Lee), केन्ट (Kent), क्लार्क 63, ब्लेक हर्ट (Black heart)
खरपतवार नियंत्रण -
• एलावलोर (लासो) अकुरण से पूर्व (Pre emergence) @1-1.5kg/hu प्रयोग करें।
फ्लुक्लोरेलीन (बेसालिन)
PPI (बुआई से पूर्व 2-10
दिन) @1KE प्रयोग करें।
रोग (Disease)
चारकोल रोट • राइजोक्टोनिया बोटेटीकोला
बीज उपचार कार्बेन्डाजिम 2-3g / किग्रा बीज ।
पीलिया रोग (Yellow disease)
लोहा तत्व व जिंक की कमी से होता है।
Fe SO, का 0.5 प्रतिशत का छिड़काव करें।
Yellow Mosaic:- वायरस द्वारा
■ इसमें सफेद मक्खी वाहक (Vector) का कार्य करती है।
Dimethoate @ 2-3ml/ली. पानी के साथ छिड़काव करें।
कीट (Inseets) :
1. गर्डल बीटल (Girdle beetle)
अगेती फसल में फलियों में छेद कर बीजों को खाता है।
Dimethoate @ 2-3मिली. / ली. पानी में छिड़काव करें।
2. टोबेको केटल पिलर (Spodoptera litura) - यह कीट कोटा खण्ड (राजस्थान) में वर्ष 2001 में सोयाबीन की फसल पर महामारी के रूप में फैला।
उपज (Yield)
25-30 q/ha. सिंचित क्षेत्रों में
10-15 q/ha. असिंचित क्षेत्रों में
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